||यष्टिरूपं मधु यष्टिमधु (नि.शे. टी।) || यष्टिमधु या मुलहठी एक जानी पहचानी जारी बूटी है जिसे प्राय: गले व स्वास संबन्धित विकारो में प्रयोग में लेते है | इसका लेटिन नाम Glycyrrhiza glabra Linn है , व संस्कृत में इस यष्टि या यष्टिमधु के नाम से भी जाना जाता है | आमतोर पर इसकी ताने को इसकी छाल सहित सूखा कर प्रयोग में लाया जाता है | इसका स्वाद मीठा होता है जो की इसके नाम यष्टिमधु में भी झलकता है |अधिक बोलने या चीखने या चिल्लाने के कारण आवाज बैठ जाती है जिसमे मुलहठी चूसने मात्र से लाभकारी है | गले में किसी प्रकार के संक्रामण व खराश में भी लाभकर है , मुह के छालो में इसके टुकड़ो को शहद के साथ चूसने में लाभकारी होती है | सुखी ख़ासी में मुलहटी का काड़ा या मुलहटी चूर्ण शहद के साथ लाभकर है | मुलहटी नामावली 1. संस्कृत: यष्टिका , यष्टिमधु, मधुका, मधुयष्टि 2 आसामी : जेश्तिमधु , येष्टमधु 3 बंगाली: यष्टिमधु 4. गुजराती:जेठीमदा 5. हिन्दी: मुलहटी , मुलेठी, मुलेटी , जेष्टिमधु 6. कन्नड : जेष्तिमधु , अतिमधुरा , जयष्टामधु 7. कश्मीरी: मुलथी 8. मलयालम : इरट्टीमधुरम 9. मराठी: जेस्टमधु 10. ओडिया : जतिमधु 11. पंजाबी : जेतिमध 12. तमिल : अतिमधुरम 13. तेलेगु: अतिमधुरमु 14. उर्दू: असल-उस-सूस गुण धर्म रस : मधुर गुण: गुरु , स्निग्ध वीर्य: शीत विपाक: मधुर कर्म: बाल्य, चाक्षुषय , वृष्या , वर्ण्य ,वातपित्तज ,रक्तप्रसाधन औषधिक उपयोग: कसा, केशया , स्वरभेदा ,वातरक्ता ,वर्ण्य औषधि : एलादी गुटिका , यस्टीमधुका तेल , मधुयस्टादी तेल मात्रा: 2 से 4 ग्राम चूर्ण रूप में या चिकित्सक के निर्देशा अनुसार