|| मारीचं वेल्लजं कृष्णमूण धर्मपत्तनम ||
|| मारीचं कटुकं तीक्ष्ण दीपनं कफ़वातजित ||
|| उष्ण पित्तकरं रुक्ष श्वासशूलकृमिन्हरेत ||
मारीच जिसे हम साधारण तोर पर काली मिर्च के नाम से भी जानते है , इसके और भी नाम है जैसे की वेल्लज , कृष्ण आदि |
काली मिर्च तीखे स्वाद की औषधि है ये कफ व वात दोषो को शांत करती है व पित्त दोष को बड़ाती है | यह गरम मनी जाती है , ये पाचन क्रिया को उत्तेजित करनी वाली होती है , रूखेपन में बदोत्तरी करती है | ये श्वास जनित रोगो, पेट में दर्द में लाभकर है |
काली मिर्च जोकि भारत के दक्षिण व उत्तर पूर्वी राज्यों में पैदा होती है ,पुरातन काल से भारत में काली मिर्च की फसल की जा रही है | कच्ची कालीमिर्च जो की हरे रंग की होती है उसका आचार भी डाला जाता है | भारत से निर्यात होने वाली ये एक प्रमुख फसल है , इसकी खोज में कई यूरोपियन व अमेरिकी उपनिवेशक ने भारत की और रुख किया था |
कालीमिर्च को उसके तीखे स्वाद व उसके महक के लिए अक्सर प्रोयग में लाया जाता है | ये महक olioresin नमक तत्व के कारण होती है व इसका तीखा स्वाद पेपरिन नमक तत्व के कारण होता है | एक 100 ग्राम के सेंपल में करीब 13.2% नमी होती है , 11.5% प्रोटीन होता है , 6.8% फेट (वसा) होता है , फाइबर करीब 14.9% होता है , कर्ब्स करीब 49.2% होता है , मिनरल्स में 4.4% होते है , मिनेरल्स जिसमे कैल्सियम , फास्फोरस, आइरन , थाइयमीन , रिबोफ्लाविन आदि है |
आयुर्वेद में मारीचं को सुगंधित , पाचन क्रिया को उत्तेजित करने वाला , पसीना लाने वाला , कफ का हरण करने वाला तथा पेट के कीड़े मारने वाला बताया गया है | यह पेट में रस के उत्सर्जन को उत्तेजित करके पाचन को बड़ाता है , यह घी को पचाने में भी सहायक होता है |
यह पेट की गॅस , अपच व पेचीस में लाभकर है , काले जीरे व कालीमिर्च को शहद के साथ लेने में बवासीर में राहत मिलती है | आत्यधिक कालीमिर्च के प्रयोग से पेट में जलन व उल्टी भी हो सकती है | ठंड के मौसम में काली मिर्च का प्रयोग बड़ा देने से सर्दी,ख़ासी आदि से भी रक्षा होती है | काली मिर्च के पकाए तेल से arthritis व rheumatism में भी राहत मिलती है , छोटे मस्से या पिंपल पर इसके पेस्ट से राहत मिलती है |
कालीमिर्च की नामवाली
1. संस्कृत: मारीच ,वेल्लज
2. बंगाली : गोलमोरिच , कलामोरिच , मोरिच
3. इंग्लिश : ब्लैक पेपर
4. गुजराती : कलिमोरी
5. कन्नड : करिमोनारु , मोनारु
6. मलयालम : कुरुमूलकु
7. मराठी: कालीमिरी
8. पंजाबी : गलमिर्च , काली मिर्च
9. तमिल : मिलगु
10. तेलेगु: मरिचमू
11. उर्दू : फिल फिल स्याह
गुण व धर्म
रस: कटु तिक्त
गुण: लघु , रुक्ष , तीक्ष्ण
वीर्य : उष्ण
विपाक : कटु
कर्म : श्लेष्महरा , दीपन, मेदोहरा, पित्तकर ,कफवात्जित , वातहर, छेदन,वातरोग
औषधीय उपयोग : श्वास, शूल , क्रीमरोग , त्वगरोग
औषधि : मरीचादी तेल , मरीचादी गुटिका ,त्रिकटु चूर्ण